भूत-प्रेत (Ghost) के अस्तित्व के बारे में समुदाय (Society) में भले ही भिन्न-भिन्न धारणाएं प्रचलित हों लेकिन मृत व्यक्तियों की आत्माओं के एक शरीर (Body) से दूसरे शरीर (Body) में प्रवे्य की बात सभी मानते हैं। गीता में आत्मा के अजर-अमर होने की बात स्पष्ट कही गई है। इस आलेख में भूत-प्रेत के अस्तित्व एवं उनसे आने वाली बाधाओं का परिचय दिया गया है…
हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं। विज्ञान (Science) की विभिन्न शाखाओं में नित नई खोज हो रही है। आयुर्विज्ञान में भी खोज जारी है। पुराने प्रकार की महामारियों (हैजा, प्लेग (Plague), टी. बी. आदि) पर काबू पा जाने का दावा किया जा रहा है। परंतु एड्स (Aids) और कैन्सर (Cancer) जैसे जानलेवा रोगों का जन्म (Birth) हो गया है। समय-समय पर विभिन्न प्रकार के परीक्षण (Testing) करने के पष्चात् डाक्टर (Doctor) परीक्षणों की रिपोर्ट के आधार पर रोगी का ट्रीटमेंट ( Treatment) करते हैं। बहुत बार यह भी देखा जाता है कि परीक्षण में व्यक्ति विशेष में कोई रोग नहीं होता, फिर भी वह रुग्ण ही रहता है। जातक की कुंडली (Horoscope) भी रोग बताने में सक्षम होती है। छठे और आठवें भावों का जातक के रोग का प्रकार, समय और उपाय बताने में विशेष महत्व है।
प्रसंग जन्मपत्रिका और भूत प्रेत बाधा का है। भूत-प्रेत के अस्तित्व का जहां तक प्रश्न है, इनके बारे में कोई भी संदेह करना व्यर्थ है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार 84 लाख योनियां इस जगत में विद्यमान हैं जिनमें मन (Mind)ुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ है। महर्षि वेदव्यास रचित गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण (Shree Krishna) ने अपने श्रीमुख से कहा है कि आत्मा अजर-अमर है, मात्र शरीर (Body) मरता है। आत्मा जब एक से दूसरे शरीर (Body) में जाती है (चाहे किसी भी योनि में) तो पहले वाले शरीर (Body) की मृत्यु हो जाती है। दरअसल पहले से दूसरे शरीर (Body) में जाने के बीच पड़ने वाले समय में ही मोह मायाव्य आत्मा का भटकाव होता है और ये ही आत्माएं यदि घर और परिवार तक सीमित (Limited) रहती हैं तो ‘पितृ’ (प्रेत/आहुत) कहलाती है। और
घर-परिवार की परिधि से बाहर जो आत्मा (Soul) निकल जाती है, वह भूत कहलाती है। शास्त्रों में इसी कारण पितरों/पूर्वजों की अतृप्त आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण का प्रावधान किया गया है।
पश्चात देशों (Countrys) में, और अब तो हमारे देश (Country) में भी, ‘प्लेन चिट’ के माध्यम से लोग मृत व्यक्तियों की आत्माओं को बुलाते हैं और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध इन आत्माओं से अपनी शंकाओं का समाधान कराते हैं। प्रकृति के नियमों के विरुद्ध मैं इसलिए कह रहा हूं कि मेरे संपर्क में ऐसे व्यक्ति भी आए हैं जो आत्माओं को स्वार्थव्य या जिज्ञासाव्य बुलाते थे। ये आत्माएं ऐसे लोगों की शंकाओं का समाधान भी करती थीं। परंतु बहुत सी आत्माएं वापस नहीं गईं और ये लोग आज तक उनके प्रकोप से पीड़ित हैं और अपना ट्रीटमेंट ( Treatment) नहीं करा पा रहे हैं। ये आत्माएं उन लोगों को और उनके परिजनों को मानसिक, शारीरिक (Body) और आर्थिक रूप से प्रताड़ित कर रही हैं।
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जहां तक विज्ञान (Science) का प्रश्न है, भूत-प्रेत बाधा (वायु विकार) को विज्ञान (Science) और वैज्ञानिक नहीं मानते हैं। फिर भी मनुष्य इस प्रकार की बाधाओं से ग्रस्त हो जाता है। आधुनिक (Modern) चिकित्सा शास्त्र में इसका कोई इलाज नहीं है क्योंकि चिकित्सा शास्त्र में इस तरह की बाधाओं से पीड़ित व्यक्तियों को मानसिक रोगियों की श्रेणी में रखा जाता है। आयुर्विज्ञान में किसी परीक्षण का खोज (Invention) नहीं हो पाया है। ये बाधाएं न तो खून (Blood), पे्याब आदि की जांच में आती हैं और न ही इ. सी. जी., एक्स-रे, सोनोग्राफी या सिटी स्कैन में।
भूत-प्रेत बाधाग्रस्त लोग आम (Mango) तौर पर पागल (Mad)ों की भांति व्यवहार करते हैं। बहुत बार इस प्रकार की बाधा व्यक्ति के शरीर (Body) के अंग विशेष (हाथ, पैर, कमर, छाती, मस्तिष्क, जोड़ आदि) पर ही प्रभाव डालती है और प्रत्यक्ष में शरीर (Body) के उस अंग व्यिेष पर लकवा या पक्षाघात का प्रभाव दिखाई देता है। लाख प्रयास करने के बाद भी शायद ( Treatment) नहीं हो पाता है क्योंकि वास्तव में वह कोई रोग ही नहीं होता है। जब रोग ही नहीं होगा तो ट्रीटमेंट ( Treatment) कैसे होगा? मस्तिष्क या सिर पर बाधा सवार होने पर व्यक्ति सुस्त और खोया-खोया सा रहता है तथा निरंतर एक ही वस्तु या स्थान की ओर निहारता रहता है और चेतना्यून्य हो जाता है। ऐसा व्यक्ति भयग्रस्त रहता है, व्याकुलता (Nervousness) और सिर चकराना (Dizziness) आने की शिकायत करता रहता है। प्रत्यक्ष रूप में ये लक्षण रक्त-दाब (Blood Pressure) के होते हैं परंतु रक्त-दाब (Blood Pressure) की जांच करने पर वह सामान्य पाया जाता है। मनोडाक्टर (Doctor) ऐसे लोगों को नींद की गोलियां दे देते हैं, यह मानकर कि उनके बुद्धि (Brain) पर कोई बात असर कर गई है, वे सदमा खो बैठे हैं, बिजली के शॉर्ट्स लगा देते हैं, फिर भी उनकी व्याधि कम नहीं होती।
भूत-प्रेत बाधाग्रस्त लोग उग्र ही हो यह कतई आवश्यक नहीं है। इन बाधाओं से ग्रस्त लोगों के शरीर (Body) पर भी व्यापक असर देखने को मिलता है और व्यवहार भी बदल जाता है जो बाधा का समय लंबा होने पर और गहरा होता जाता है। भूत-प्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्तियों में सामान्यतः निम्न लक्षण पाए जाते हैं।
मन (Mind) उच्चाटित और उड़ा-उड़ा रहने लगता है।
अनावश्यक घबराहट महसूस होने लगती है।
सामान्य स्थिति से नींद आने का अनुपात कम या ज्यादा हो जाता है।
उबासियां या हिचकियां, विशेषकर सुबह और शाम की आरती के समय, आनी शुरू हो जाती हैं।
कई बार मूच्र्छा की शिकायत भी रहती है।
यदि व्यक्ति उग्र आत्मा के प्रकोप से ग्रस्त होता है, तो उसकी आवाज में भी बदलना (Change) हो जाता है।
आंखों का रंग अपनी वास्तविकता खो देता है और वे या तो न्यीली (लाल रंग की) या सफेद हो
जाती हैं।
चेहरे पर सूजन (Swelling) आ जाती है और कई बार चेहरा पीला पड़ जाता है।
रात (Night) के समय पीड़ित व्यक्ति को अपने घर में भी अनावश्यक व्याकुलता (Nervousness) रहती है और भय लगता
है।
मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और उसका व्यवहार उसकी सामान्य स्थिति से एकदम विपरीत हो
जाता है। उसकी नींद और खान-पान की मात्रा में कमी या बढ़ोतरी हो जाती है।
कई बार पीड़ित व्यक्ति चलते समय अपना भार नहीं झेल पाता है और शराबी की तरह लड़खड़ाता
है।
कई बार पीड़ित व्यक्ति में भाव आ जाते हैं और उस पर आने वाली आत्मा अपने आप को देवी, देवता या पीर बताकर प्रसाद ग्रहण करती है।
पीड़ित व्यक्ति पर सुबह के समय अनावश्यक भारीपन रहता है और स्फूर्ति खत्म हो जाती है।
साधारणतया आत्मा शरीर (Body) के अंग विशेष पर अपना अधिकार जमा लेती है और पीड़ित व्यक्ति
कमर (Back), हाथों के जोड़ों, कंधों, पैरों, घुटनों, कमर (Back) के नीचे पैरों के जोड़ों में दर्द (Pains) की शिकायत करता रहता है। यह निष्चित नहीं है कि दर्द (Pains) एक ही स्थान पर स्थिर हो, वह स्थान बदलता भी
रहता है। शरीर (Body) बिना किसी रोग के सूखता जाता है और पीला पड़ जाता है।
सांसारिक मोह-माया, भोग-विलास और बदले लेने की प्रवृत्ति के कारण ही मृत्यु के बाद आत्माएं भटकती हैं, इसलिए ये आत्माएं भोग-विलास के लिए भी पीड़ित व्यक्ति के शरीर (Body) का उपयोग करती हैं। मेरे संपर्क में ऐसे कोई पीड़ित स्त्रियां और पुरुष आए हैं जिनके साथ अतृप्त आत्माएं निद्रावस्था में संभोग करती हैं। सबसे बड़ी बात यह देखने में आई है कि ये आत्माएं पीड़ित लोगों के नजदीकी रिश्तेदारों या मित्रों (विपरीत लिंग) के रूप में ही शारीरिक (Body) संबंध स्थापित करती हैं। ऐसे पीड़ित व्यक्तियों के पैरों में दर्द (Pains) की शारीरिक (Body) रहती है।
आत्माओं की वासना की शिकायत स्त्रियों में प्रायः यह भी देखा गया है कि डाक्टर (Doctor) की दृष्टि से निरोग (Healthy) होने के बावजूद वे मां नहीं बन पाती हैं और 15 दिन से दो-ढाई माह की अवधि तक गर्भवती रहने के बावजूद 4-6 बार तक लगातार गर्भस्राव (Miscarriage) हो जाते हैं।
और भी लक्षण हैं जो हम पीड़ित लोगों के व्यवहार में देख सकते हैं। हम ज्योतिष (Astrology) शास्त्र के अनुसार जन्मपत्रिका के अध्ययन के आधार पर उक्त पीड़ा के विषय में बात कर रहे हैं। फलित ज्योतिष (Astrology) में भूत-प्रेत बाधा पर ज्यादा साहित्य मेरी जानकारी में नहीं आया है। मानसिक रोगों के लिए कुंडली (Horoscope के पांचवें भाव, चंद्रमा (मन (Mind) का कारक), बुध (बुद्धि और विवेक का कारक) तथा गुरु (पांचवें भाव का कारक) की कुंडली (Horoscope में स्थिति का अध्ययन आवष्यक है। यदि उपर्युक्त ग्रहों और पंचम भाव में से एक भी दूषित हो तो मानसिक रोग होता है।
मैंनें अपने अध्ययन में शुक्र ग्रह को इन बाधाओं के लिए ज्यादा जिम्मेदार माना है। लग्ने्य के बलवान होने की स्थिति में बाधा का प्रकोप कम रहता है। फलित ज्योतिष (Astrology) में शुक्र ग्रह सुंदरता को प्रतिबिंबत करता है। सौंदर्य प्रसाधन और सुगंधित द्रव्य, इत्र आदि का कारक ग्रह भी शुक्र ही है। हमारे परिवार में बडे़-बूढ़े शायद इन्हीं कारणों से समय-समय पर इत्र लगाकर घर से बाहर निकलने के लिए मना करते हैं। व्यावहारिक रूप में प्रायः यह देखा जाता है कि सुंदर स्त्रियां (Beautiful Womens) और लड़कियां ही अधिकतर इन बाधाओं की शायद होती हैं।
जातक पर तांत्रिकों (Tantrikas) द्वारा भूत-प्रेत बाधा लगाई गई है या प्रयोग किया गया है या नहीं इसकी जानकारी के लिए जन्मपत्रिका (Horoscope) के छठे भाव का अध्ययन अति आवष्यक है। कलाई (Wrist) में नाड़ी की स्थिति भी भूत-प्रेत बाधा बताने में सक्षम है।
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